कितनी अजीब है ये जिंदगी की कहानी
कितनी अजीब है ये जिंदगी की कहानी
अंदर ही अंदर रोता है दिल
पर बाहर से खामोश होना पड़ता है
न चाहते हुए भी सज्जनों
अपनों को खोना पड़ता है
कितनी अजीब है ये जिंदगी की कहानी।
रोज सुबह सूरज आता है
शाम होते ही वो भी ढल जाता है
परछाई जो हर पल साथ चलती है
देख अंधेरा वो भी छुप जाता है
कितनी अजीब है ये जिंदगी की कहानी।
मैं से चले न दुनिया,मैं से चमके न भाग्य
मैं की करें जो चाकरी, जागे उनका दुर्भाग्य
मैं की दलदल से उबरों, मैं है दुष्ट शैतान
मैं छोड़ा तो हरि मिले,मिले ज्ञान अमृत समान
कितनी अजीब है ये जिंदगी की कहानी।
क्यों अकड़कर तू चलता है
तेरे हाथों में क्या कुछ है
चार दिनों की जिंदगी है पर
न उम्र तेरे हाथों में है, न सांसे तेरे बस में है
कितनी अजीब है ये जिंदगी की कहानी।
यह रूप रंग और यह लिबास
एक दिन फीका पड़ जाता है
मुख मंडल की छाप भी
दीर्घकालीन तक अमिट नही रह सकता है
कितनी अजीब है ये जिंदगी की कहानी।
नूतन लाल साहू
Gunjan Kamal
03-Jun-2024 01:10 PM
👏🏻👌🏻
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RISHITA
01-Jun-2024 07:22 PM
V nice
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Aliya khan
01-Jun-2024 01:50 AM
Nice
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